Wednesday, June 20, 2018

बगडावत भारत कथा और श्री देवनारायण - 20






साडू माता सोचती है कि रोज कोई न कोई यहां आता है, कहीं रावजी सेना भेजकर बच्चे को भी न मरवा दे। यह सोचकर वह गोठां छोड़ कर मालवा जाने की तैयारी करती है। और दूसरे ही दिन साडू माता अपने विश्वासपात्र भील को बुलवाती है। बच्चे का जलवा पूजन करने के पश्चात साडू माता बालक देवनारायण, भील, हीरा दासी,नापा ग्वाल और अपनी गायें साथ लेकर गोठां छोड़ मालवा की ओर निकल पड़ती है। साडू माता और हीरा अपने-अपने घोड़े काली घोड़ी और नीलागर घोड़े पर सवार हो बच्चे का पालना भील के सिर पर और नापा ग्वाल गायें लेकर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर निकल पड़ते हैं। रास्ते में भील एक गोयली को देखता है तो बालक देवनारायण को वहीं एक खोल में रख कर गोयली का शिकार करने उसके पीछे भाग जाता है। उधर साडू माता और हीरा काफी आगे निकल जाते हैं। रास्ते में एक जगह एक शिकारी हिरनी का शिकार कर रहा होता है। हिरनी के साथ उसके बच्चे होते हैं। हिरनी अपने बच्चों को बचाए हुए दौड़ रही होती है। ये देख कर साडू हीरा से कहती है कि देख हीरा ये हिरनी अपने बच्चों को बचाने के लिये अपनी जान जोखिम में डाल रही है। शिकारी का तीर अगर इसे लग जायेगा तो ये मर जायेगी। ये बात हिरनी सुन लेती है और कहती है कि मैनें इसे जन्म दिया है, इसे झोलियां नहीं खिलाया है। इसलिए मैं अपनी जान देकर भी इसकी जान बच हिरनी की बात सुनकर साडू को अपने बच्चे की याद आती है और उसे ढूंढती हुई वो वापस पीछे की ओर आती है। वापसआकर साडू माता देखती हैं कि बच्चे का पालना एक पेड़ के नीचे खोल में पड़ा हुआ है और एक शेरनी उसके ऊपर खड़ी देवनारायाण को दूध पिला रही है। 

साडू माता यह देख अपना तीर कमान सम्हाल कर शेरनी पर निशाना साधती है। शेरनी कहती है साडू माता रुक जा, तीर मत चलाना। मैं इसे दूध पिलाकर चली जाउंगी इस बच्चे को भूख लगी है, इसके रोने की आवाज सुनकर मैं आयी हूं। इससे पहले मैं इसे ६ बार दूध पिला चुकीं हूं। यह सातवीं बार दूध पिला रही हूं। यह बात सुनकर साडू माता चौंक जाती है और पूछती है कि इससे पहले कब-कब दूध पिलाया। तो शेरनी उसे पिछले जन्मों की सारी बात बताती है। वहीं से साडू माता अपने बच्चे के साथ-साथ चलती है। चलते-चलते वो माण्डल पहुंचते हैं, जहां थोड़ी देर विश्राम करते हैं। यहां बगड़ावतों के पूर्वज माण्डल जी ने जल समाधी ली थी वहां उनकी याद में एक मीनार बनी हुई है जिसे माण्डल के मन्दारे के नाम से जाना जाता हैं। माण्डल से आगे चलकर रास्ते में मंगरोप गांव में सब लोग विश्राम करते हैं। वहां साडू माता और हीरा दासी बिलोवणा बिलोती है। वहां बची हुई छाछ गिरा देती है। कहा जाता है मंगरोप में बची हुई छाछ से बनी खड़ीया की खान आज भी है। मंगरोप से रवाना होकर दो दिन बाद सब लोग मालवा पहुंचते हैं। साडू माता अपने पीहर में पहुंचकर सबसे गले मिलती है। मालवा के राजा साडू माता के पिताजी थे। मालवा में ही रहकर देवनारायण छोटे से बड़े हुए थे। वह बचपन में कई शरारते करते थे, अपने साथियो के साथ पनिहारिनों के मटके फोड़ देते थे। जब गांव वाले राजाजी को शिकायत करने आते और कहते कि आपका दोयता रोज-रोज हमारी औरतों की मट्की फोड़ देता है, रोज-रोज नया मटका कहां से लाये, तो राजाजी ने कहा कि सभी पीतल,ताम्बे का कलसा बनवा लो और खजाने से रुपया ले लो। देवनारायण वहां के ग्वालों के साथ जंगल में बकरियां और गायें चराने जाते थे और अपनी बाल क्रिड़ाओं से सब को सताया करते थे। देवनारायण के मामा ने उनको कह रखा था कि जंगल में सिंधबड़ की तरफ कभी मत जाना वहां चौसठ जोगणियां और बावन भैरु रहते है, तुम्हे खा जायेगें। एक दिन देवनारायण जंगल में बकरियां चराने जाते हैं अपने साथियों को तो बहाना बना कर गांव वापस भेज देते हैं और खुद बकरियों को लेकर सिंध बड़ की ओर चले जाते हैं। सिंध बड़ पहुंचकर सभी जोगणियों को और बावन भैरु को पेड़ पर से उतार कर कहते हैं कि मैं यहां सो रहा हूं, तुम सब मेरी बकरियों को चराओ। मेरे जागने पर एक भी बकरी कम पड़ी तो मैं तुम्हारी आंतों में से निकाल लूंगा और देवनारायण कम्बल ओढ कर वहीं सिंध बड़ के नीचे सो जाते हैं। दो पहर सोने के बाद उठते हैं और सब को आवाज देकर बुलाते हैं। जोगणियां और भैरु नारायण के पांव पड़ जाते हैं और कहते है भगवान आज तो हम भूखे मर गये। नारायण पूछते हैं कि तुम यहां क्या खाते हो, अपना पेट कैसे भरते हो ? भैरु कहते है कि उड़ते हुए परिंदों को पकड़ कर खाते हैं। आज तो पूरा दिन आपकी बकरियां चराने में रह गये।नारायण कहते है मेरी एक बकरी को छोड़कर तुम सब बकरियों को खा जाओं। देवनारायण अपनी बकरी को गोद में उठाकर वापस आ जाते हैं। मामा पूछते है की नारायण बाकि सब बकरियां कहां है। नारायण कहते हैं मैं रास्ता भूल गया और सिंध बड़ पहुंच गया। वहां देखता हूं की बड़ के पेड़ से काले-काले भूत निकलकर सारी बकरियों को खा गऐ, मैं अपनी बकरी को लेकर भाग के आ गया।मामा कहते हैं तू वहां से जीवित वापस कैसे आ गया, तेरे को किसी भूत ने नहीं पकड़ा ? मामाजी सोचते हैं ये जरुर कोई अवतार है। वह साडू माता से देवनारायण के बारे में पूछते हैं। साडू माता उन्हें सब सच बताती है। मामाजी देवनारायण के लिए चन्दन का आसन बनवाते हैं और दूधिया नीम के नीचे देवनारायण को बिठाकर उनकी पूजा करते हैं। गांव के सभी लोग उनके दर्शनों को आते हैं और देवनारायण लूले-लगड़े, कोढ़ी मनुष्यों को ठीक कर उनका कोढ़ झाड़ देते हैं। इस प्रकार से देवनारायण अपने मामा के यहां मालवा में बड़े होते हैं।

 बगडावत भारत कथा - 20

Wednesday, March 14, 2018

बगडावत भारत कथा और श्री देवनारायण-19






इधर सभी बगड़ावतों का नाश हो जाने पर साडू माता हीरा दासी सहित मालासेरी की डूंगरी पर रह रही होती है। एक दिन अचानक वहाँ पर नापा ग्वाल आता है और सा माता को ७ बीसी राजकुमारों के भी मारे जाने का समाचार देता है और कहता है कि साडू माता यहां से मालवा अपने पीहर वापस चलो। कहीं राजा रावजी यहां पर चढ़ाई ना कर दे। लेकिन सा माता जाने से मना कर देती है। जब एक दिन साडू माता की काली घोड़ी के नीला बछेरा पैदा होता हैं, तब साडू माता को भगवान की कही बात याद आती है कि काली घोड़ी के एक बछेरा होगा वो नीलागर घोड़ा होगा उसके बाद मैं अवतार लूंगा साडू माता भगवान के कहे अनुसार सुबह ब्रह्म मुहर्त में स्नान ध्यान कर भगवान का स्मरण करती है। वहीं मालासेरी की डूंगरी पर पहाड़ टूटता है और उसमें से पानी फूटता है, जल की धार बहती हुई निकलती है, पानी में कमल के फूल खिलते हैं, उन्हीं फूलों में से एक फूल में भगवान विष्णु देवनारायण के रुप में अवतरित होते हैं।

माघ शुक्ला ७ सातय के दिन सम्वत ९६८ सुबह ब्रह्म मुहर्त में भगवान देवनारायण मालासेरी की डूंगरी पर अवतार (जन्म) लेते हैं। देवनारायण के टाबर (बालक) रुप को साडू माता अपने गोद में लेती है, उन्हें दूध पिलाती हैं और उन्हें लाड करती हैं। वहां से साडू माता हीरा दासी और नापा ग्वाल गोठां आते हैं। गांव में आते ही घर-घर में घी के दिये जल जाते हैं और सुबह जब गांव भर में बालक के जन्म लेने की खबर होती है, नाई आता हैं घर-घर में बन्धनवाल बांधी जाती हैं। भगवान के जन्म लेने से घर-घर में खुशी ही खुशी हो जाती हैं। साडू माता ब्राह्मण को बुलवाती है बच्चे का नामकरण संस्कार होता है। भगवान ने कमल के फूल में अवतार लिया है, इसलिए ब्राह्मण उनका नाम देवनारायण रखते हैं। साडू माता ब्राह्मण को सोने की मोहरे, कपड़े देती है, भोजन कराती है, मंगल गीत गाये जाते हैं। सूर्य पूजन का काम होने के बाद गांव की सभी महिलाएं साडू माता को बधाई देने आती हैं। गांव भर में लोगों का मुंह मीठा कराया जाता है कि साडू माता की झोली में नारायण ने अवतार लिया है।उधर रावजी के महलो में अपशगुन होने लगते हैं।


रावजी को सपने आने लगते हैं कि तेरा बैर लेने के लिये साडू माता की झोली में नारायण ने जन्म लिया है। वही तेरा सर्वनाश करेगें। रावजी सपना देखकर घबरा जाते हैं, और गांव-गांव दूतियां (डायन) का पता करवाते और बुलवाते हैं। और कहते हैं कि गोठां गांव में एक टाबर (बालक) ने जन्म लिया है उसे खत्म करके आना है। डायने राण से गोठां में आ जाती है और लम्बे-लम्बे घूघंट निकाल कर घर में घुसती है। देखती है साडू माता भगवान के ध्यान में लगी हुई हैं। और दो डायन अन्दर आकर देखती है झूले में (पालकी) एक टाबर अपने पांव का अंगुठा मुंह में लेकर खेल रहा है। उसके मुंह में से अगुंठा निकाल अपनी गोद में लेकर जहर लगा अपना स्थन देवनारायण के मुंह में दे देती हैं। नारायण उसका स्तन जोर से अपने दांतों से दबा देते हैं, जिससे उसके प्राण निकल जाते हैं।यह देख दूसरी डायनें वहां से भाग कर राण में वापस आ जाती हैं। रावजी फिर ब्राह्मणों को बुलाते हैं और कहते हैं कि गोठां जाकर वहां साडू माता के यहां एक टाबर हुआ है उसे मारना है। यदि तुम उसे मार दोगे तो मैं तुम्हें आधा राज बक्शीस में दूंगा। ब्राह्मण सोचते हैं कि टाबर को मारने में क्या है, उसे तो हम मिनटों में ही मार आयेगें। गोठां में आकर ब्राह्मण साडू माता को कहते हैं की आपके यहां टाबर ने जन्म लिया है, उसका नाम करण संस्कार करने आऐ हैं।


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साडू माता साधुओं का सत्कार करती है और कहती है कि आटा दाल से आप अपने लिये अपने हाथों से रसोई बनाओं और भोजन करों। ब्राह्मण कहते हैं कि साडू माता आप सवा कोस दूर रतन बावड़ी से कच्चे घड़े में पानी भर लाओ तब हम रसोई बनाकर भोजन करेगें। साडू माता मिट्टी का घड़ा लेकर पानी लेने चली जाती है। पीछे से ब्राह्मण घर में इधर-उधर ढूंढते हैं। उनमें से एक ब्राह्मण को एक पालने में टाबर देवनारायण सोये हुए दिखते हैं। जहां शेषनाग उनके ऊपर छतर बन बैठा हुआ है और चारों और बिच्छु ही बिच्छु घूम रहे हैं। यह देख ब्राह्मण सोचता है बालक में दूध की खुश्बू से सांप और बिच्छु आ गये हैं और उसे मार दिया है। देवनारायण को मरा हुआ जानकर वह बाकि तीनों ब्राह्मणों को उस कमरे में बुलाता है तो भगवान विष्णु की माया से सारे ब्राह्मणों को पालने में देवनारायण के अलग-अलग रुप दिखाई देते हैं। उनमें से एक को तो पालना खाली दिखाई देता हैं। अपनी-अपनी बात सच साबित करने के लिए ब्राह्मण आपस में ही लड़ पड़ते हैं। ब्राह्मण लड ही रहे होते हैं कि इतने में साडू माता पानी लेकर आ जाती है और ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देती है। ५ सोने की मोहरे देती है। चारों ब्राह्मण वहां से बाहर आकर पांचवीं सोने की मोहर को बांटने के लिए लड़ने लग जाते हैं, एक दूसरे की चोटियां पकड़ कर गुत्थम-गुत्था करने लग जाते हैं। साडू माता यह देखकर सोचतीं हैं कि इन्हें तो लगता है रावजी ने भेजा है और अन्दर जाकर अपने बच्चे को सम्भालती है।


Wednesday, March 7, 2018

बगडावत भारत कथा और श्री देवनारायण-18






रानी जयमती ने सवाई भोज को अपने पास महल में ही चौपड़ में उलझाए रखा और युद्ध भूमि में जाने नहीं दिया। सारे भाईयों की मौत के बाद सवाई भोज खुद रण क्षेत्र में जाने की तैयारी करते हैं। रानी जयमती से अपने अस्र-शस्र मांगते हैं तो रानी वहां पर भी एक वर मांगती है कि मैं भी आपके साथ युद्ध में चलूंगी और आपके पीछे बुंली घोड़ी पर सवार रहूंगी मगर आप पीछे मुड़कर मेरी ओर नहीं देखना, नहीं तो मैं आपका सिर उतार लूंगी। यह वचन देने के बाद रानी सवाई भोज को उनके अस्र-शस्र देती है। सवाई भोज अपनी सेना को साथ लेकर युद्ध करने के लिये राठोडा की पाल पर पहुंच जाते हैं। रावजी के सामने जाकर उनके ऊपर तलवार से हमला करते हैं। रानी जयमती अपना हाथ आगे कर देती हैं, जिससे उसके हाथों की चूड़ियां कट जाती है। सवाई भोज पीछे मुड़ कर कहते है ये क्या करती हो रानी सा अभी आप का हाथ कट जाता। रानी कहती है की लाओ मेरा वचन पूरा करो, आपने वचन दिया था कि पीछे मुड़कर नहीं देखूंगा इतना सुनते ही सवाई भोज खुद अपना सिर काट कर रानी को दे देते हैं। सवाई भोज की मौत की खबर सुनकर सवाई भोज की दूसरी रानियाँ भी वहाँ आ जाती हैं और हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती हैं। मगर पदमादे, जो मेहन्दु जी की माँ थी उन्होने, साडू माता को हाथ जोड़ने से मना कर दिया। वहीं भवानी, चौबीस भाईयों की मुण्ड माला बना रही थी। इधर रावजी कहते हैं भाई राणी कहां है, राणी के लिये ही तो युद्ध किया है। रावजी के इतना कहते ही पेड़ पर बैठी भवानी बोलती है राजाजी ऊपर देखो, रावजी देखकर घबरा जाते है। रानी जयमती भवानी का रुप धारण कर गले में मुण्ड माला धारण कर २० भुजाओं युक्त सिंह पर सवार बड़ के पेड़ पर बैठी हुई है। यह रुप देख रावजी और नीमदेव घबरा जाते हैं। रावजी को रानी के विराट रुप के दर्शन करने के बाद रावजी पछताते हैं कि हमने ऐसे ही अपने भाईयों को खत्म कर दिया है। बगड़ावतों के मरने के बाद उनकी सम्पत्ति की लूट मच जाती है। कश्मीरी तम्बू तो मन्दसोर का मियां ले जाता है, जय मंगला और गज मंगला हाथी पीलोदा के कुम्हार ले गये और सवाई भोज की बुंली घोड़ी सावर के ठाकुर दिया जी ले जाते हैं। सोने का पोरसा पहले ही तेजाजी लेकर चले गये थे और बगड़ावतों की अच्छी नस्ल की गायें नापा ग्वाल गोसमा डूगंरा में ले गया। रावजी नीमदेव से कहते हैं कि सब सामान तो लोग लूट कर ले गये हैं। उन्हें बगड़ावतों के मारे जाने का अफसोस होता है और कहते हैं कि ऐसे भाई कहां मिलेगें। और यह महसूस करते हैं कि यह सब भवानी की माया है जो बगड़ावत मारे गये। सारी रानियों के सती होने के साथ पदमादे भी सती हो जाती है और साडू माता को सती होने से मना कर देती है क्योंकि भगवान ने अभी उनके यहाँ जन्म लेना है। सभी बगड़ावतों की रानियों के सती होने के बाद, साडू माता हीरा दासी को साथ लेकर मालासेरी की डूगंरी पर रहने आ जाती है। अब रावजी कहते हैं कि बगड़ावतों के बालक टाबर हो तो उन्हें मैं पाल-पोस कर बड़ा करूं और वापस बगड़ावत खड़े करूं। यह बात छोछू भाट का मौसेरा भाई गांगा भाट सुन लेता है। उसे पता होता है कि बगड़ावतों के ७ बीसी कुमारों ( १४० कुमार) को छोछू भाट, भाट मगरें में पाल रहा है। रावजी जब अपनी सेना के साथ भाट मंगरे पहुंचते हैं, वहां छोछू भाट मंगरे पर बैठा देखता है कि सेना आ रही है तो सभी ७ बीसी राजकुमारों को मंगरे में छोड़ कर भाग जाता है। कालूमीर पठान रावजी से कहते हैं कि रावजी इनको पालने की गलती मत करना, इन्हें यहीं मार देते हैं, नहीं तो ये बड़े होकर अपने बाप-दादों का बैर आपसे लेगें। और कालूमीर कहता है कि रावजी २४ बगड़ावतों से युद्ध करते-करते ६ - ८ महीने हो गये, ये तो पूरे १४०है इनसे कैसे निपटेगें। रावजी कालूमीर पठान की बात मान जाते है और उन्हें मारने का आदेश दे देते हैं। कालूमीर पठान उन बच्चों को वहीं मार देता है। उनमें से एक बच्चा बच जाता है भूणाजी, उसे पत्थर पर पटक देते हैं लेकिन वह बच्चा नहीं मरता है। (इन्हें लक्ष्मण का अवतार बताया गया है।) जब भूणाजी नहीं मरता हैं तो रावजी उसे अपना पीण्डी पाछ बेटा बना लेते हैं, अपनी पीड़ली के चीरा लगाकर एक दूसरे का खून आपस में मिला कर धरम बेटा बना लेते हैं। भूणाजी को लाकर रावजी अपनी रानी को देते हैं और कहते हैं कि इसे भी राजकुमारी तारादे के साथ-साथ अपना दूध पिलाओ और पाल-पोस कर बड़ा करो। रानी अपने स्थनो के जहर लगाकर भूणाजी को दूध पिलाती है, भूणाजी फिर भी नहीं मरते। आखिर रानी भूणाजी को हाथी के पावों से कुचलवाने को कहती है, हाथी उन्हें अपनी सूण्ड से उठाकर अपनी पीठ पर बैठा लेता है। यह सब देख कर रानीजी के भाई चान्दारुण के रहने वाले सातल-पातल, भूणाजी की चंटी अंगुली काटकर उन्हें खाण्डेराव का नाम देते हैं। सातल-पातल भूणाजी की अंगुली काटते समय यह कहते हैं की भाण्जे जब तू बड़ा हो जावे तब तेरे में ताकत हो तो हमसे बैर ले लेना। ये बात वहां बैठा एक पून्या जाट सुन लेता है और इस बात को गांठ बांध लेता है, वक्त आने पर भूणाजी को बता इस तरह बगड़ावतों के मारे जाने पर सारा परिवार अलग-अलग हो गया। रावजी ने बगड़ावतों के ७ बीसी कुमारों को भी मरवा दिया। उनके परिवार के बचे हुए ४ कुमार अलग-अलग जगह पर पले बढ़े। जिनमें सबसे बड़े मेहन्दू जी अजमेर में, तेजाजी के बेटे मदनों जी उनके पास पाटन में, भूणा जी राण में और भांगीजी बाबा रुपनाथ के पास ही पले बढ़े।



Sunday, March 4, 2018

बगडावत भारत कथा और श्री देवनारायण-17






रण क्षेत्र में नियाजी के पास रानी जयमती (भवानी) आती है और कहती है कि नियाजी मुझे अपना शीश दे दीजिए। आपने वचन दिया था कि मैं एक बार आपसे जो भी मांगूगीं आप मुझे वो दे देंगे। नियाजी अपने हाथ से ही अपना शीश काटकर भवानी के थाल में रखकर देते हैं और कहते हैं कि भाभीजी मेरा वचन पूरा हो गया। नियाजी का सिर कटने के बाद उनकी छाती में आँखे निकल आती हैं, नाभि की जगह मुँह बन जाता है और गले के ऊपर कमल का फूल खिल जाता है। सिर कटने के बाद भी नियाजी अपने दोनों हाथों से हाथियों की पूंछ पकड़कर घुमा-घुमाकर फेंक देते हैं। जिनके नीचे दबकर कई सैनिक मर जाते हैं। भवानी नियाजी से कहती है कि आपका माथा कटने के बाद भी आप लड़े जा रहे हैं और कहती है कि माथा तो है नहीं मैं आपकी आरती करूं तो तिलक कहाँ करूं। नियाजी कहते हैं माताजी मैं आपको मान गया हूं। बस आपने आरती कर ली। भवानी सोचती है कि यह तो अभी रुकेगा नहीं। भवानी सोचती है कि यह तो सिर कटने के बाद भी लड़ता जा रहा है इसलिए क्यों न मैं इसे नील का छींटा दे दूँ (जो कि अशुभ होता है) जिससे नियाजी खाण्डा डाल देंगे। नियाजी को भवानी की बात समझ आ जाती है और उनकी वाणी होती है कि भाभीजी मेरे ऊपर नील का छींटा मत डालना। इससे मेरा मोक्ष नहीं होगा। मैं खाण्डा डाल देता हूँ लेकिन माँ चामुण्डा मेरा वंश खत्म मत करना जैसे तूने भूणाजी, मेहन्दू जी और मदनो जी को छोड़ा है वैसे मेरे वंश को छोड़ देना। इस पर भवानी नेतुजी के ६ महीने के गर्भ को जीवित छोड़ देने का वचन देती है। नियाजी अब खाण्डा छोड़ देते हैं और पृथ्वी माता से निवेदन करते हैं कि मुझे धरती में समा ले। जब सवाई भोज को नियाजी की मौत का पता लगता है तो वह भवानी को कोसते हैं कि तू मेरे निया जैसे भाई को खा गई। भवानी कहती है कि मैं तो डायन हूं। नियाजी की क्या सोच करते हो, मैं तो द्रौपदी बनकर कौरवों और पाण्डवों को खा गई, मेरा तो काम ही यही है। सवाई भोज कहते हैं कि नियाजी जैसा भाई तो मुझे कभी नहीं मिल सकता। वह मेरे २२ भाइयों के बराबर एक ही था। भवानी कहती है कि मैं कई देवी देवताओं को खा गई, तू एक नियाजी की क्या बात करता है। मैं तो बड़े- बड़ों को खा गई। सवाई भोज कहते हैं कि माँ चामुण्डा दूर रह ये तेरी करनी मुझे जचीं नही मुझे। नियाजी के बाद रण भूमि में बाहरावत जी अपनी सेना के साथ युद्ध करने के लिए आते हैं और वो भी लड़ाई करते हुए मारे जाते हैं। नियाजी और बाहरावतजी की तरह सभी भाई एक-एक करके रावजी की फौजों से युद्ध करने के लिए खारी नदी पर आए। खारी नदी पर ही सब युद्ध हुए थे। खारी नदी के एक किनारे पर रावजी की फौजें थी तो दूसरी और बगड़ावतों की फौजें। यह युद्ध कलयुग का महाभारत का युद्ध था। इस युद्ध में सवाई भोज के सभी महाबली योद्धा भाई काम आ गए। रानी को दिए वचन के अनुसार एक-एक भाई ने अपनी फौज के साथ खारी नदी पर आकर रावजी की सेना के साथ युद्ध किया था। इन बगड़ावत भाइयों की रानियाँ सतीवाड़े में सती होती हैं। चूंकि नेतुजी ६ महीने के गर्भ से थी इस अवस्था में वह सती नहीं हो सकती थी, इसलिए वह बगड़ावतों के गुरु बाबा रुपनाथ की धूणी पर आती है और कहती है बाबाजी इस पेट में लोथ पल रहा है इसे निकाल कर आप अपने पास रख लो। बाबा रुपनाथ कहते है, मैं तेरे हाथ नहीं लगा सकता क्योंकि तू मेरे चेले की रानी है, मैने तेरे हाथ का खूब भोजन किया है, और यदि मैं तेरे को हाथ लगाता हूँ तो अगले जन्म में मैं सूअर बनूंगा। यह सुनकर नेतुजी खुद ही अपना पेट चीरकर गर्भ बाहर निकाल कर बाबा को देती है और बाबा उसे अपने पास रखे भांग के घड़े में डाल देते हैं और ढक देते हैं। नेतुजी कहती है बाबा जी अब आप ही इसके मां-बाप हो और इसकी सुरक्षा आपकी जिम्मेदारी है। यह कहकर नेतुजी अपनी कमर को वापस बांध लेती है और कहती है तीन महीने बाद इसका जन्म होगा और इसका नाम भांगड़े खान रखना। नेतुजी बाबा रुपनाथजी से कहती है इस बच्चे को साधू मत बनाना। और इसको सफेद कपड़े देना, भगवा वस्र मत पहनाना। राताकोट की जीत यही करेगा, यह बड़ा होकर अपने बाप का बैर लेगा। यह एक नया बदनोरा गांव बसायेगा। बाबा से आज्ञा लेकर नेतु वहां से सती होने के लिये जाती है जहां सभी बगड़ावत भाईयों की स्रियाँ नहा धोकर १६ श्रृंगार कर सती होने के लिए अपने-अपने पति के शवों के साथ चिता में बैठ जाती हैं। सती होते समय नेतु रानी जयमती को श्राप देती है कि अगले जनम में तू बड़े घर में जन्म लेगी तेरे शरीर पर कोढ झरेगा, तेरे सिर पर सींग होगा और तेरे से शादी करने वाला कोई नहीं मिलेगा। रानी श्राप से भयभीत हो जाती है और नेतु से कहती है की मेरा उद्धार कैसे होगा। विनती करती है।नेतु कहती है कि पीपलदे के नाम से तू धार के राजा के यहां जन्म लेगी और भगवान देवनारायण मालवा से लौटते समय तेरा उद्धार करेगें।


Monday, February 26, 2018

बगडावत भारत कथा और श्री देवनारायण-16



बाबा रुपनाथजी निया से कहते हैं कि निया सब पहर का युद्ध करने के बाद सीधा तू मेरे पास आना। नियाजी कहते है बाबा गुरुजी मैदान से दिन भर की लड़ाई के बाद थक जाउंगा। ७ कोस चलकर आप के पास आना तो मुमकिन नहीं है। बाबा रुपनाथजी कहते है कि तेरी बात सही है, मैं ही तेरे साथ चलता हूं और नेगदिया में ही धूणी रमाता हूँ बाबा रुपनाथ और नियाजी साथ-साथ नेगदिया आ जाते हैं। बाबा रुपनाथ नेगदिया गांव के बाहर ही अपनी धूणी लगा लेते हैं। शंकर भगवान के अवतार बाबा रुपनाथ जी नियाजी को आशीर्वाद देकर युद्ध के लिये विदा करते हैं। और जब तक नियाजी युद्ध करते हैं तब तक नेगदिया छोड़ कर नहीं जाते हैं। हर सुबह सूरज उगने के साथ नियाजी रण का डंका बजा कर रावजी की सेना पर टूट पड़ते और कई सैनिको और सामंतो को मार डालते। रावजी के खास निजाम ताजूखां पठान, और अजमल खां पठान की १२ हजार सेना का सफाया कर नियाजी उनके सिर काट देते हैं। हर शाम नियाजी युद्ध भूमि से वापस लौटते समय अपने गुरु बाबा रुपनाथ जी की धूणी पर आते हैं। बाबा रुपनाथजी अपने हाथ का कड़ा नियाजी की देह पर घुमाते हैं और धूणी की राख लगाकर, अपने कमण्डल में से पानी के छीटें देते है जिससे नियांजी के सारे घाव भर जाते हैं और शरीर पर कहीं भी तलवार या भाले की चोट के निशान नहीं रहते हैं। बाबा रुपनाथ कहते हैं कि ये बात किसी को मत बताना, किसी को भी इसका जिक्र मत करना। अब बावड़ी पर स्नान कर शिवजी का ध्यान करके घर जाओ। नियाजी बावड़ी पर स्नान करते हैं, शिवजी का ध्यान कर रंग महल में आते हैं। नेतुजी उन्हें भोजन करवाती है, पंखा झलती है। नियाजी अगली सुबह वापस रण क्षेत्र में आ जाते हैं और युद्ध में मालवा के राजा को मार गिराते हैं। मन्दसोर के मियां मोहम्मद की फौजो का सफाया कर देते हैं। मियां का सिर काट देते हैं और वापस बाबा रुपनाथजी के पास आते हैं। और फिर बाबा रुपनाथजी नियाजी के ऊपर अपना लोहे का कड़ा घुमाते हैं, धूणी की राख लगाते हैं, पानी के छीटें देते हैं। नियाजी के सारे घाव फिर से भर जाते हैं। ये क्रम कई दिनों तक चलता रहता हैं। उधर तेजाजी बगड़ावतों के बड़े भाई युद्ध क्षेत्र मेंआते हैं। जब नियाजी से युद्ध करके जाने के बाद रावजी की सेना खाना बना रही होती है, रावजी के सैनिक बाट्या सेक रहे होते हैं। तब तेजाजी अपनी सेना के साथ युद्ध क्षेत्र में आते है उनकी बाट्या वगैरा सब बिखेर देते हैं और सेना में भगदड़ मचा कर वापस चले जाते हैं। दोनों भाईयों का ये क्रम ३-४ दिनों तक चलता रहता है।नियाजी को युद्ध करते हुए पांच महीने से भी ज्यादा समय हो जाता हैं। भवानी (जयमती) सोचती है कि ऐसी क्या बात है नियाजी लगातार युद्ध कर रहें हैं। पता लगाना चाहिये, और रानी नेतुजी के पास जाकर कहती है कि क्या बात है भाभी जी देवर नियाजी को पांच महीने से ज्यादा समय हो गया है युद्ध करते हुए, क्या तुमने इनके शरीर पर कहीं तलवार या भाले का निशान देखा है ? ऐसी क्या बात है ? वापस आते समय कपड़ो के ऊपर खून का निशान तक नहीं होता। इसका क्या कारण है ? देख पता करना और मुझे बताना। नेतु कहती है की रानी सा आज नियाजी के युद्ध से आने के बाद पताकर्रूंगी। शाम को नियाजी युद्ध क्षेत्र से बाबा रुपनाथ के पास जाकर रंग महल में वापस आते हैं। खाना खाते समय नेतु पंखा झलती हुई नियाजी से कहती है एक बात पूछती हूं। आपको कई दिन हो गये लड़ाई करते हुए, आपके शरीर पर मुझे कभी कोई तलवार का निशान या कपड़ो पर खून तक लगा न नहीं आया, क्या राज है ? इस बात को मुझे बताओ। नियाजी कहते है नेतु ये बात बताने की नहीं है और तू मत पूछ मैं नहीं बताऊगां। नेतु जिद करती है तो नियाजी कहते है कि ठीक है मैं तुझे बता देता हूं लेकिन ये किसी और को मत बताना। नेतु कहती है नहीं बताऊगीं। नियाजी बाबा रुपनाथ की सारी प्रक्रिया नेतु को बता देते हैं। और अगली सुबह वापस युद्ध करने चले जाते हैं। पीछे से रानी जयमती आती है और नेतु से पूछती है कि नियाजी से क्या बात हुई। नेतु पहले तो मना कर देती है। बहाना बना लेती है कि वह नियाजी से पूछना भूल गई। रानी जयमती नेतु को कहती है कि भाभीजी आप तो झूठ कभी नहीं बोलती हो आज झूठ क्यो बोल रही हो? नेतु कहती है कि रानी सा आप किसी को नही कहना और वो सारी बात जयमती को बता देती है कि बाबा रुपनाथजी के पास एक ऐसा कड़ा है जिसे उनके शरीर पर घुमाने से नियाजी के सारे घाव भर जाते हैं। रानी जयमती वहां से सीधी बाबा रुपनाथ की धूणी पर आती है। उन्हें प्रणाम कर वहां घड़ी दो घड़ी रुकती है और पता लगाती है कि बाबा रुपनाथजी वो कड़ा कहां रखते हैं। उसे पता चलता है कि कड़ा बाबा के आसन के नीचे रखा हुआ है। और वो अपनी माया से चील बन जाती है और बाबा के आसन के नीचे से कड़ा अपनी चोंच में उठा कर उड़ जाती है। बाबा रुपनाथजी समझ जाते हैं कि निया ने जरुर भेद खोल दिया है। जब नियाजी युद्ध करके लौटते है तो बाबा रुपनाथ उससे कहते हैं कि निया तूने भेद किसे बताया है। निया को अफसोस होता है और कहते हैं कि आखिर औरतों के पेट में कोई बात नहीं टिकती। और बाबा रुपनाथ को प्रणाम कर वापस रण क्षेत्र में लौट आते हैं



Saturday, February 24, 2018

बगडावत भारत कथा और श्री देवनारायण-15



इधर युद्धभूमि से वापिस आकर नेतुजी नियाजी को जगाती है और कहती है कि उठिए, आप के दोनों बेटे घमासान युद्ध में मारे गए हैं। जब नियाजी उठते हैं तो देखते हैं कि उनके महल की छत पर बहुत सारी गिरजें (चीलें) बैठी हुई हैं। नियाजी गिरजों से पूछते हैं कि कहो आपका यहाँ कैसे आना हुआ। गिरजें कहतीं हैं कि हमें रावजी और बगड़ावतों के युद्ध की खबर सात समुन्दर पार से लगी है। कलयुग के इस महाभारत में हम अपनी भूख मिटाने आई हैं। अगर आप हमारी भूख मिटाने का वचन दो तो हम यहाँ रुकें नहीं तो वापस जाएं। नियाजी जवाब देते हैं कि इस युद्ध में मैं बहुत लोगों के सिर काटूगां। तुम पेट भर कर खाना। और अगर तुम मेरी बोटियाँ खाना चाहती हो तो ६ महीनें बाद आना। मैं ६ महीने का भारत करुँगा (नियाजी को ६ महीने आगे तक का पहले से ही आभास हो जाता था) नियाजी युद्ध में जाने से पहले भगवान से प्रार्थना करते हैं कि मैं महल में बहुत आराम से रहा और अगले जन्म भी मुझे इसी देश में ही भेजना और भाई भी सवाई भोज जैसा ही देना। फिर नेतुजी नियाजी की आरती उतारती है और युद्ध में जाने के लिए उनके तिलक करती हैं। नेतुजी फिर नियाजी को सवाईभोज से मिलने जाने के लिए कहती है। नियाजी, नेतुजी कि बात मानकर सवाई भोज से मिलने जाते हैं। जब दोनों भाई गले मिलते हैं तब दोनों की आँखों में आँसू आ जाते हैं कि अबके बिछ्ड़े जाने कब मिलेगें। नियाजी कहते हैं कि अब हमारा मिलना नहीं होगा। नियाजी फिर रानी जयमती से भी मिलते हैं और एक वर मांगते हैं कि हमारे मरने के बाद हमारा नाम लेने वाला कौन होगा ? भवानी कहती है कि बहरावत का बेटा भूणा जी और सवाई भोज के वारिस मेहन्दूजी पानी देने के लिए रहेंगे। इन दोनों को तुम राज्य से दूर भेज दो, तो ये बच जाऐंगे। और तुम बगड़ावतों का नाम लेने वाला छोछू भाट रहेगा। और तुम्हारे यहाँ भगवान स्वयं अवतार लेंगे। इतना सुन नियाजी सवाई भोज के पास वापस आ जाते हैं। और उनके महल में अपनी बड़ी भाभी (सवाई भोज की पहली रानी पदमा दे) को बुलवाकर मेहन्दूजी को ले जाने का आग्रह करते हैं। पदमा दे बड़े भारी मन से अपने बेटे को नियाजी के साथ विदा करती है और यह तय होता है कि वो बगड़वतों के धर्म भाई भैरुन्दा के ठाकुर के पास अजमेर में रहेगा। सवाई भोज उस समय मेहन्दू के साथ कुछ सेवक और घोड़े और उनके खर्चे के लिये काफी सारी सोने की मोहरें एवं काफी सारी धन-दौलत भी भेजते हैं। सवाई भोज कहते हैं बेटा मेहन्दू कई वर्ष पहले एक बिजौरी कांजरी नटनी अपने यहां कर्तब दिखाने आयी थी तब उसे हमने ढ़ाई करोड़ का जेवर दान में दिया था। उसमें से आधा तो वो अपने साथ ले गयी और आधा (सवा करोड़ का) जेवर यहीं छोड़ गयी थी वो मेरे पास रखा है। मेरे मरने के बाद अगर वो आ जाये तो तुम ये जेवर उसे दे देना और उसके नाम का यह खत भी उसे दे देना। जेवर को एक रुमाल की पोटली में बांध कर दे देते हैं और कहते हैं कि अगर वो नहीं आये तो यह धन अपने पास मत रखना इसे कोई भी जनसेवा के काम में लगा देना। कुंआ, तालाब, बावड़ी बनवा देना। इतना कहकर सवाई भोज नियाजी और मेहंदूजी को भारी मन से भेरुन्दा ठाकुर के पास भेजने के लिए विदा करते हैं। और संदेश देते हैं कि जब कभी भी बिजौरी कांजरी आए, यह जेवर उसे मेहन्दू के हाथ से दिला देना। सवाई भोज मेहन्दु जी के अलावा बगड़ावतों के ४ और बच्चे नियाजी को दे देते हैं और कहते हैं कि इन सबको भेरुन्दा ठाकुर के पास पहुँचा देना रानी जयमती को इस बारे में पता चलता है तो वो हीरा को कहती है कि नियाजी चोरी करके ४ बच्चों को ले गए हैं लेकिन मैं किसी को नहीं छोडूंगी और वह अपना चक्र चला कर मेहन्दूजी के अलावा बाकी सब बच्चों के शीश काट लेती है। मेहन्दू जी भेरुन्‍दा ठाकुर के पास अजमेर चले जाते हैं। यहां से फिर नियाजी अपनी रानी नेतुजी को साथ लेकर बाबा रुपनाथजी के पास गुरु महाराज के दर्शन के लिये रुपायली जाते हैं। और उनके पांव छूकर कहते हैं कि गुरुजी आज्ञा दो तो युद्ध शुरु करे, बाबा आशिष देवो। नियाजी बाबा रुपनाथजी की परिक्रमा लगा कर कहते हैं मेरे जैसे चेले तो आपको बहुत मिल जायेगें, मगर मुझे आप जैसा गुरु फिर नहीं मिलेगा। बाबा रुपनाथजी कहते हैं, बच्चा यह क्या कहते हो, मेरे जैसे तो बाबा बहुत मिल जायेगें मगर तेरे जैसा चेला नहीं मिलेगा। नियाजी कहते हैं कि जब मैं अगला जन्म लूं तो मुझे शेर का जन्म देना ताकि मेरे मरने के बाद आपके बिछाने के लिए मेरी खाल काम आ जाए। नेतुजी बाबा रुपनाथ से कहती है कि मेरे पति को अगले जन्म में अगर शेर का जन्म मिले तो मुझे शेरनी का जन्म देना ताकि मैं उनके साथ वन में रह कर उनके दर्शन करती रहूँ। बाबा रुपनाथ फिर नेतुजी से कहते हैं कि अगर नियाजी का शीश भवानी ले जाए तो तू इसका खाण्डा अपने साथ ले जाना और इसके खाण्डे के साथ ही सती हो जाना। बाबा रुपनाथ यह वचन नेतुजी से ले लेते हैं। बाबा रुपनाथ जी नियाजी को अपनी कुटिया के अन्दर ले जाते हैं। उन्हें एक जड़ी-बूटी देते हैं और कहते हैं कि इसे अपने साथ युद्ध-भूमि पर ले जाओ। नियाजी को जड़ी देकर बाबा रुपनाथ कहते हैं कि यह ऐसी जड़ी है जिसके असर से सिर कटने के बाद भी तुम ८० पहर तक दुश्मन से लड़ सकते हो। तुम इसे अपनी जांघ पर बांध लो लेकिन इसकी खबर किसी को भी मत देना।



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