Monday, February 26, 2018

बगडावत भारत कथा और श्री देवनारायण-16



बाबा रुपनाथजी निया से कहते हैं कि निया सब पहर का युद्ध करने के बाद सीधा तू मेरे पास आना। नियाजी कहते है बाबा गुरुजी मैदान से दिन भर की लड़ाई के बाद थक जाउंगा। ७ कोस चलकर आप के पास आना तो मुमकिन नहीं है। बाबा रुपनाथजी कहते है कि तेरी बात सही है, मैं ही तेरे साथ चलता हूं और नेगदिया में ही धूणी रमाता हूँ बाबा रुपनाथ और नियाजी साथ-साथ नेगदिया आ जाते हैं। बाबा रुपनाथ नेगदिया गांव के बाहर ही अपनी धूणी लगा लेते हैं। शंकर भगवान के अवतार बाबा रुपनाथ जी नियाजी को आशीर्वाद देकर युद्ध के लिये विदा करते हैं। और जब तक नियाजी युद्ध करते हैं तब तक नेगदिया छोड़ कर नहीं जाते हैं। हर सुबह सूरज उगने के साथ नियाजी रण का डंका बजा कर रावजी की सेना पर टूट पड़ते और कई सैनिको और सामंतो को मार डालते। रावजी के खास निजाम ताजूखां पठान, और अजमल खां पठान की १२ हजार सेना का सफाया कर नियाजी उनके सिर काट देते हैं। हर शाम नियाजी युद्ध भूमि से वापस लौटते समय अपने गुरु बाबा रुपनाथ जी की धूणी पर आते हैं। बाबा रुपनाथजी अपने हाथ का कड़ा नियाजी की देह पर घुमाते हैं और धूणी की राख लगाकर, अपने कमण्डल में से पानी के छीटें देते है जिससे नियांजी के सारे घाव भर जाते हैं और शरीर पर कहीं भी तलवार या भाले की चोट के निशान नहीं रहते हैं। बाबा रुपनाथ कहते हैं कि ये बात किसी को मत बताना, किसी को भी इसका जिक्र मत करना। अब बावड़ी पर स्नान कर शिवजी का ध्यान करके घर जाओ। नियाजी बावड़ी पर स्नान करते हैं, शिवजी का ध्यान कर रंग महल में आते हैं। नेतुजी उन्हें भोजन करवाती है, पंखा झलती है। नियाजी अगली सुबह वापस रण क्षेत्र में आ जाते हैं और युद्ध में मालवा के राजा को मार गिराते हैं। मन्दसोर के मियां मोहम्मद की फौजो का सफाया कर देते हैं। मियां का सिर काट देते हैं और वापस बाबा रुपनाथजी के पास आते हैं। और फिर बाबा रुपनाथजी नियाजी के ऊपर अपना लोहे का कड़ा घुमाते हैं, धूणी की राख लगाते हैं, पानी के छीटें देते हैं। नियाजी के सारे घाव फिर से भर जाते हैं। ये क्रम कई दिनों तक चलता रहता हैं। उधर तेजाजी बगड़ावतों के बड़े भाई युद्ध क्षेत्र मेंआते हैं। जब नियाजी से युद्ध करके जाने के बाद रावजी की सेना खाना बना रही होती है, रावजी के सैनिक बाट्या सेक रहे होते हैं। तब तेजाजी अपनी सेना के साथ युद्ध क्षेत्र में आते है उनकी बाट्या वगैरा सब बिखेर देते हैं और सेना में भगदड़ मचा कर वापस चले जाते हैं। दोनों भाईयों का ये क्रम ३-४ दिनों तक चलता रहता है।नियाजी को युद्ध करते हुए पांच महीने से भी ज्यादा समय हो जाता हैं। भवानी (जयमती) सोचती है कि ऐसी क्या बात है नियाजी लगातार युद्ध कर रहें हैं। पता लगाना चाहिये, और रानी नेतुजी के पास जाकर कहती है कि क्या बात है भाभी जी देवर नियाजी को पांच महीने से ज्यादा समय हो गया है युद्ध करते हुए, क्या तुमने इनके शरीर पर कहीं तलवार या भाले का निशान देखा है ? ऐसी क्या बात है ? वापस आते समय कपड़ो के ऊपर खून का निशान तक नहीं होता। इसका क्या कारण है ? देख पता करना और मुझे बताना। नेतु कहती है की रानी सा आज नियाजी के युद्ध से आने के बाद पताकर्रूंगी। शाम को नियाजी युद्ध क्षेत्र से बाबा रुपनाथ के पास जाकर रंग महल में वापस आते हैं। खाना खाते समय नेतु पंखा झलती हुई नियाजी से कहती है एक बात पूछती हूं। आपको कई दिन हो गये लड़ाई करते हुए, आपके शरीर पर मुझे कभी कोई तलवार का निशान या कपड़ो पर खून तक लगा न नहीं आया, क्या राज है ? इस बात को मुझे बताओ। नियाजी कहते है नेतु ये बात बताने की नहीं है और तू मत पूछ मैं नहीं बताऊगां। नेतु जिद करती है तो नियाजी कहते है कि ठीक है मैं तुझे बता देता हूं लेकिन ये किसी और को मत बताना। नेतु कहती है नहीं बताऊगीं। नियाजी बाबा रुपनाथ की सारी प्रक्रिया नेतु को बता देते हैं। और अगली सुबह वापस युद्ध करने चले जाते हैं। पीछे से रानी जयमती आती है और नेतु से पूछती है कि नियाजी से क्या बात हुई। नेतु पहले तो मना कर देती है। बहाना बना लेती है कि वह नियाजी से पूछना भूल गई। रानी जयमती नेतु को कहती है कि भाभीजी आप तो झूठ कभी नहीं बोलती हो आज झूठ क्यो बोल रही हो? नेतु कहती है कि रानी सा आप किसी को नही कहना और वो सारी बात जयमती को बता देती है कि बाबा रुपनाथजी के पास एक ऐसा कड़ा है जिसे उनके शरीर पर घुमाने से नियाजी के सारे घाव भर जाते हैं। रानी जयमती वहां से सीधी बाबा रुपनाथ की धूणी पर आती है। उन्हें प्रणाम कर वहां घड़ी दो घड़ी रुकती है और पता लगाती है कि बाबा रुपनाथजी वो कड़ा कहां रखते हैं। उसे पता चलता है कि कड़ा बाबा के आसन के नीचे रखा हुआ है। और वो अपनी माया से चील बन जाती है और बाबा के आसन के नीचे से कड़ा अपनी चोंच में उठा कर उड़ जाती है। बाबा रुपनाथजी समझ जाते हैं कि निया ने जरुर भेद खोल दिया है। जब नियाजी युद्ध करके लौटते है तो बाबा रुपनाथ उससे कहते हैं कि निया तूने भेद किसे बताया है। निया को अफसोस होता है और कहते हैं कि आखिर औरतों के पेट में कोई बात नहीं टिकती। और बाबा रुपनाथ को प्रणाम कर वापस रण क्षेत्र में लौट आते हैं



Saturday, February 24, 2018

बगडावत भारत कथा और श्री देवनारायण-15



इधर युद्धभूमि से वापिस आकर नेतुजी नियाजी को जगाती है और कहती है कि उठिए, आप के दोनों बेटे घमासान युद्ध में मारे गए हैं। जब नियाजी उठते हैं तो देखते हैं कि उनके महल की छत पर बहुत सारी गिरजें (चीलें) बैठी हुई हैं। नियाजी गिरजों से पूछते हैं कि कहो आपका यहाँ कैसे आना हुआ। गिरजें कहतीं हैं कि हमें रावजी और बगड़ावतों के युद्ध की खबर सात समुन्दर पार से लगी है। कलयुग के इस महाभारत में हम अपनी भूख मिटाने आई हैं। अगर आप हमारी भूख मिटाने का वचन दो तो हम यहाँ रुकें नहीं तो वापस जाएं। नियाजी जवाब देते हैं कि इस युद्ध में मैं बहुत लोगों के सिर काटूगां। तुम पेट भर कर खाना। और अगर तुम मेरी बोटियाँ खाना चाहती हो तो ६ महीनें बाद आना। मैं ६ महीने का भारत करुँगा (नियाजी को ६ महीने आगे तक का पहले से ही आभास हो जाता था) नियाजी युद्ध में जाने से पहले भगवान से प्रार्थना करते हैं कि मैं महल में बहुत आराम से रहा और अगले जन्म भी मुझे इसी देश में ही भेजना और भाई भी सवाई भोज जैसा ही देना। फिर नेतुजी नियाजी की आरती उतारती है और युद्ध में जाने के लिए उनके तिलक करती हैं। नेतुजी फिर नियाजी को सवाईभोज से मिलने जाने के लिए कहती है। नियाजी, नेतुजी कि बात मानकर सवाई भोज से मिलने जाते हैं। जब दोनों भाई गले मिलते हैं तब दोनों की आँखों में आँसू आ जाते हैं कि अबके बिछ्ड़े जाने कब मिलेगें। नियाजी कहते हैं कि अब हमारा मिलना नहीं होगा। नियाजी फिर रानी जयमती से भी मिलते हैं और एक वर मांगते हैं कि हमारे मरने के बाद हमारा नाम लेने वाला कौन होगा ? भवानी कहती है कि बहरावत का बेटा भूणा जी और सवाई भोज के वारिस मेहन्दूजी पानी देने के लिए रहेंगे। इन दोनों को तुम राज्य से दूर भेज दो, तो ये बच जाऐंगे। और तुम बगड़ावतों का नाम लेने वाला छोछू भाट रहेगा। और तुम्हारे यहाँ भगवान स्वयं अवतार लेंगे। इतना सुन नियाजी सवाई भोज के पास वापस आ जाते हैं। और उनके महल में अपनी बड़ी भाभी (सवाई भोज की पहली रानी पदमा दे) को बुलवाकर मेहन्दूजी को ले जाने का आग्रह करते हैं। पदमा दे बड़े भारी मन से अपने बेटे को नियाजी के साथ विदा करती है और यह तय होता है कि वो बगड़वतों के धर्म भाई भैरुन्दा के ठाकुर के पास अजमेर में रहेगा। सवाई भोज उस समय मेहन्दू के साथ कुछ सेवक और घोड़े और उनके खर्चे के लिये काफी सारी सोने की मोहरें एवं काफी सारी धन-दौलत भी भेजते हैं। सवाई भोज कहते हैं बेटा मेहन्दू कई वर्ष पहले एक बिजौरी कांजरी नटनी अपने यहां कर्तब दिखाने आयी थी तब उसे हमने ढ़ाई करोड़ का जेवर दान में दिया था। उसमें से आधा तो वो अपने साथ ले गयी और आधा (सवा करोड़ का) जेवर यहीं छोड़ गयी थी वो मेरे पास रखा है। मेरे मरने के बाद अगर वो आ जाये तो तुम ये जेवर उसे दे देना और उसके नाम का यह खत भी उसे दे देना। जेवर को एक रुमाल की पोटली में बांध कर दे देते हैं और कहते हैं कि अगर वो नहीं आये तो यह धन अपने पास मत रखना इसे कोई भी जनसेवा के काम में लगा देना। कुंआ, तालाब, बावड़ी बनवा देना। इतना कहकर सवाई भोज नियाजी और मेहंदूजी को भारी मन से भेरुन्दा ठाकुर के पास भेजने के लिए विदा करते हैं। और संदेश देते हैं कि जब कभी भी बिजौरी कांजरी आए, यह जेवर उसे मेहन्दू के हाथ से दिला देना। सवाई भोज मेहन्दु जी के अलावा बगड़ावतों के ४ और बच्चे नियाजी को दे देते हैं और कहते हैं कि इन सबको भेरुन्दा ठाकुर के पास पहुँचा देना रानी जयमती को इस बारे में पता चलता है तो वो हीरा को कहती है कि नियाजी चोरी करके ४ बच्चों को ले गए हैं लेकिन मैं किसी को नहीं छोडूंगी और वह अपना चक्र चला कर मेहन्दूजी के अलावा बाकी सब बच्चों के शीश काट लेती है। मेहन्दू जी भेरुन्‍दा ठाकुर के पास अजमेर चले जाते हैं। यहां से फिर नियाजी अपनी रानी नेतुजी को साथ लेकर बाबा रुपनाथजी के पास गुरु महाराज के दर्शन के लिये रुपायली जाते हैं। और उनके पांव छूकर कहते हैं कि गुरुजी आज्ञा दो तो युद्ध शुरु करे, बाबा आशिष देवो। नियाजी बाबा रुपनाथजी की परिक्रमा लगा कर कहते हैं मेरे जैसे चेले तो आपको बहुत मिल जायेगें, मगर मुझे आप जैसा गुरु फिर नहीं मिलेगा। बाबा रुपनाथजी कहते हैं, बच्चा यह क्या कहते हो, मेरे जैसे तो बाबा बहुत मिल जायेगें मगर तेरे जैसा चेला नहीं मिलेगा। नियाजी कहते हैं कि जब मैं अगला जन्म लूं तो मुझे शेर का जन्म देना ताकि मेरे मरने के बाद आपके बिछाने के लिए मेरी खाल काम आ जाए। नेतुजी बाबा रुपनाथ से कहती है कि मेरे पति को अगले जन्म में अगर शेर का जन्म मिले तो मुझे शेरनी का जन्म देना ताकि मैं उनके साथ वन में रह कर उनके दर्शन करती रहूँ। बाबा रुपनाथ फिर नेतुजी से कहते हैं कि अगर नियाजी का शीश भवानी ले जाए तो तू इसका खाण्डा अपने साथ ले जाना और इसके खाण्डे के साथ ही सती हो जाना। बाबा रुपनाथ यह वचन नेतुजी से ले लेते हैं। बाबा रुपनाथ जी नियाजी को अपनी कुटिया के अन्दर ले जाते हैं। उन्हें एक जड़ी-बूटी देते हैं और कहते हैं कि इसे अपने साथ युद्ध-भूमि पर ले जाओ। नियाजी को जड़ी देकर बाबा रुपनाथ कहते हैं कि यह ऐसी जड़ी है जिसके असर से सिर कटने के बाद भी तुम ८० पहर तक दुश्मन से लड़ सकते हो। तुम इसे अपनी जांघ पर बांध लो लेकिन इसकी खबर किसी को भी मत देना।



बगडावत भारत कथा और श्री देवनारायण-14




दूसरा हमला रावजी नेगड़िया पर करते हैं। वहां नियाजी ६ महीने की नींद में सो रहे होते हैं। नियाजी की रानी नेतुजी हाथ में जल की जारी ले कर उन्हें जगाने आती है। लेकिन नियाजी नहीं जागते। फिर नेतुजी नियाजी की माँ लखमादे राठौड़ को नियाजी को जगाने के लिए बुलाती है। लेकिन वे भी उनको नहीं जगा पाती तब नियाजी के लड़के जोधा और जगरुप अपनी माँ को कहते हैं कि पिताजी को क्यूं जगाती हो, उन्हें सोने दो हम लड़ाई करने जायेगें। माँ नेतुजी अपने बेटो को मना करती है कि अभी तुम छोटे हो ( ९ बरस के) अभी तुम्हारी युद्ध में जाने की उम्र नहीं है। इस पर जोधा और जगरुप जिद करते हैं कि हम रावजी से अकेले ही निपट लेगें। पिताजी (नियाजी) को सोने दो, उन्हे मत जगाओ। नेतु अपने दोनों बेटो जोधा-जगरुप की आरती करती है और उन्हें युद्ध के लिये भेजती है। जोधा-जगरुप रावजी से युद्ध करने जाते हैं। दोनों भाई रावजी की फौजों से लडाई करते हुए कई सामंतो और सरदारों को मार देते हैं और तीन दिन तक लगातार युद्ध करते रहतें हैं। जोधा-जगरुप का युद्ध देखकर भवानी हीरा को कहती है कि ये दो लड़के युद्ध करने आये हैं और रावजी की फौज के साठ हजार सैनिकों को खत्म कर दिया। यह देख रानी भवानी ने एक चक्र चलाया औरे दोनों भाइयों के माथे उतार लिये। जब रावजी ने दीयाजी से पूछा की आज की लड़ाई कैसी रही। दीयाजी ने कहा टोड़ा का रावजी आज काम आ गये और हमने सभी फौज में मरने वालों की पगड़ी और शव उनके घर भेज दिये हैं। नेतुजी साड़ीवान से युद्ध के समाचार पूछती है, तो साड़ीवान कहता है कि आपके कुवंरों ने युद्ध तो अच्छा किया लेकिन वह दोनों भी मारे गए। जोधा और जगरुप दोनों ही शादीशुदा नहीं थे इसलिए नेतुजी जब अपने बेटों के कटे हुए सिर और धड़ो की आरती के लिये आती है, गिरजों से बात करती है और पूछती है कि तुमने मेरे बेटों की लाशों को क्यों नहीं खाया। गिरजे जोधा-जगरुप की लाशों को देखकर कहती है कि अभी इनकी मरने की उम्र नहीं थी,मगर भवानी को लाने से यह दिन देखना पड़ा। इसलिए हम इन्हें नहीं खाना चाहती। भवानी जोधा और जगरुप के सिर अपनी मुण्ड माला में धारण करती है। नेतु अपने दोनों बेटो के कटे हुए धड़ की आरती उतार कर विलाप करती है। और अपने पति नियाजी को जगाने के लिए महल में चली जाती ह। तीसरा हमला रावजी की सेना अटाली पर करती है जहां बगड़ावत भाई अटाल्‍याजी अपनी एक हजार सेना के साथ रावजी के साथ युद्ध करते हैं। रावजी के छोटे भाई (तीसरे नम्बर के) आमादेजी मारे जाते हैं। रावजी की सेना से संग्राम करते हुए अटाइल्‍याजी, आलोजी भी युद्ध में मारे जाते हैं औरभवानी उनका सिर काट अपने मुण्ड माला में धारण कर लेती है। चौथा हमला रावजी रायला पर करते हैं जहां सवाई भोज की बेटी दीपकंवर बाई रावजी की सेना में मारकाट मचा देती है। दीपकंवर बाई मर्दाना वेष कवच धारण कर रावजी की सेना से घोर संग्राम करती है और उनकी काफी सारी सेनाओं को अपनी तलवार से काट डालती है। अन्त में वह दियाजी और कालूमीर से युद्ध करते हुए मारी जाती है। जिसका सिर काट कर भवानी (जयमती) ने अपनी मुण्ड माला में धारण किया था। बगड़ावतों के बड़े भाई तेजाजी को जब दीपकंवर की मौत का पता चलता है तो वह भी युद्ध में आ जाते हैं और अपने घोड़े को रावजी की फौज के सामने खड़ा कर देते हैं और दीयाजी और कालूमीर की फौज काट देते हैं। तेजाजी सात-सात कोस तक रावजी की फौज को काट डालते हैं और अपना भाला रावजी पर फेंकते हैं पर उस भाले के वार से भवानी रावजी को बचा लेती है ।


Friday, February 23, 2018

बगडावत भारत कथा और श्री देवनारायण-13






जब रावजी शिकार से वापस लौटते हैं, तब महल में रानी के गहने पड़े हुए देखते है। उन्हें नीमदेजी कहते हैं कि भाई, बगड़ावत रानी सा को भगाकर ले गये हैं। ये बात सुनकर रावजी को यकीन नहीं होता और कहते हैं वो तो हमारे भायले है वो ऐसा नहीं कर सकते हैं। जब चारों ओर साड़ीवान ( सवारसंदेश वाहक) दौड़ाए जाते हैं कि रानी सा का पता लगाओ। रावजी को संदेश वाहक से पता चलता है कि रानी सा तो बगड़ावतों के यहां गोठां में है तब जाकर रावजी को विश्वास होता है कि बगड़ावत रानी को भगाकर ले गये हैं। रावजी नियाजी को एक परवाना लिखकर भेजते हैं कि भाई राणी को वापस भेज दो। नियाजी जवाब में रावजी को पत्र लिखते हैं कि हमने तो रानी शिवजी के चढ़ा दी है और आपको रानी चाहिए तो दूसरा ब्याह कर लो। दूसरा परवाना रावजी ने बाघजी को लिखा कि रानी ने ले ग्या बेटा बाघ का, नियाजी को समझा कर रानी को वापस भेजो। बाघजी ने रावजी को जवाब लिख भेजा कि रानी तो शिवजी को चढ़ा दी है। और आपको रानी चाहिए तो दूसरा ब्याह कर लो। रावजी बगड़ावतों को समझाने का खूब प्रयास करते हैं कि रानी सा को वापस राण पहुंचा दो नहीं तो अन्जाम बुरा होगा। जो भी बगड़ावतों के पूर्वज थे उनके माध्यम से (बिसलदेवजी, बाघ सिंघ जी और कई राजाओं, सामन्तों के साथ) संदेश भेज बगड़ावतों को समझाने के प्रयास किये गये मगर बगड़ावत अपनी बात पर अड़े रहते हैं। अब रावजी एक संदेश बाबा रुपनाथ के यहां भेजते हैं कि आप के चेले बगड़ावत रानी को ले गए हैं, आप उन्हें समझाइए कि वे रानी को वापस भेज दें। बाबा रुपनाथ रावजी को जवाब देते हैं कि रानी तो अब हमारी शरण में आ चुकी है। आपको अगर लड़ाई करनी है तो पहले रुपायली पर हमला करो। बगड़ावतों तक जाने की जरुरत ही नही है। फिर बाबा रुपनाथ बगड़ावतों को संदेश भेजते हैं कि आप सब लोग लड़ाई की तैयारी कर लो। रावजी से युद्ध करना है। अब चाहे जो हो जाये, रानीजी को वापस नहीं भेजना है। सभी बगड़ावत अपने गुरु का संदेश पढ़कर जोश से भर जाते हैं। एक संदेश तेजाजी को पाटन की कचहरी में भी भेजा जाता है और तेजाजी भी युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं। लड़ाई शुरु करने से पहले बगड़ावत अपने सभी सामन्तों को सन्देशवाहक भेजकर फौज इकट्ठी कर लेते हैं और दुगने जोश से युद्ध की तैयारी के लिये अपने-अपने खैड़ो पर पहुंच जाते हैं। रानी जयमती को दिये वचन के अनुसार सभी भाईयो को अलग-अलग अपने खैड़ो से ही लड़ाई लड़नी थी। इधर रावजी अपने ५२ गढ़ो के खास सामन्तो जिनमें दियाजी, कालूमीर पठान, टोडा का सोलंकी, इत्यादि के साथ अपनी सेना को रुपायली में पहला हमला (बाबा रुपनाथ पर) करने भेजते हैं। वहां बाबा रुपनाथजी अपने सभी नागा साधुओं की फौज के साथ युद्ध के लिये तैयार होते है। बाबा रुपनाथजी रावजी की फौज को आते देख अपने पालतु कुत्तो को खुला छोड़ देते है। गाथा के अनुसार इनकी संख्या ५०० बताई गई है। रावजी की फौज इन कुत्तो के हमले से घबरा जाती है। ऊपर से नागा साधुओं के हमले से भाग छूटती है। और रावजी के यहां वापस लौट आती है। उनके कई सैनिक इस लड़ाई में मारे जाते हैं।




Wednesday, February 21, 2018

बगडावत भारत कथा और श्री देवनारायण-12





राणा रावजी और सारे सामन्तो को शिकार के बहाने दूर भेजकर रानी जयमती और हीरा बगड़ावतों के साथ भागने की योजना बनाती है। रावजी शिकार पर जाते समय नीमदेवजी को पहरे पर लगा जाते हैं कि रानी का ध्यान रखना। रानी हीरा से कहती है कि हीरा रावजी तो गये पर नीमदेवजी को पहरे पर लगा गये। अब इसका क्या उपाय करें। हीरा कहती है बाजार से जहर मंगवाओ और लाडू बनवाओ। जहर के लड्डू बनते हैं और भैरुजी के चढ़ाकर हीरा सब को बांट देती है। जो भी लड्डू खाता है वो घंटे की नींद सो जाता है। जिस रास्ते से जाना है उस रास्ते हीरा सब को लड्डू बांटकर वापस आती है ताकि उन्हें जाते हुए कोई देख ना सके। चावण्डिया भोपाजी लाडू खाते हैं तो हीरा से कहते हैं, हीरा मैंने तो मीठा मुहं कई वर्षों बाद किया है। हीरा कहती है लाडू तो सब को दे दिये मगर नीमदेवजी की सवारी महल के सामने घूम रही है। हीरा कहती है रानी जी श्रृंगार करो और पीछे के रास्ते से बगड़ावतों के यहां चलते हैं। हीरा रेशम की डोर लेकर आती है और उसकी रस्सी बनाती है और महल की पिछले वाली खिड़की से रेशम की रस्सी डालती है जिसके सहारे दोनों महल से बाहर निकल आते हैं। रानीऔर हीरा दोनों नौलखा बाग के बाहर आकर अपनी माया के प्रभाव से बाग के दरवाजे के ताले खोल देती है। ये देख कर बाग का माली रानी जी के पांव छूता है और रानी जी बगड़ावतों से मिलने अंदर जाती है। सवाई भोज अपनी बूंली घोड़ी पर रानी जयमती को और नियाजी अपने नौलखे घोड़े पर हीरा को बैठाकर राण से भाग निकलते हैं। रास्ते में रानी सोचती है कि बगड़ावतों की परीक्षा लेती हूं और देखती हूं कि ये रावजी की सेना से मुकाबला कर पायेगें कि नहीं। रानी वहीं पर घोड़े से उतर जाती है और अपने पांव की पायल खोलकर गिरा देती है और कहती है मेरी पायल बावड़ी में गिर गयी है उसे निकालो। अपनी करामात दिखाओ नहीं तो मुझे यहीं छोड़ कर वापस चले जाओ। सवाई भोज शिव महादेव जी का ध्यान करते हैं, और पानी के ऊपर पायल तैरने लग जाती है,सवाई भोज रानी को पायल वापस दे देते हैं। जब वो वापस वहां से चलने लगते हैं तब भवानी घोड़े पर सवार सवाई भोज के कलेजे (दिल) पर हाथ रखे होती है और अपने मैल से तीतर बनाकर घोड़ी के पावों में छोड़ देती है जिससे घोड़ी चमक जाती है, और उछलती है। तब सवाई भोज की धड़कन तेज हो जाती है और रानी जयमती कहती है कि सवाई भोज जी घोड़ी के चमक जाने से ही आपका कलेजा जोर से धड़कने लगा है। आप मुझे लेकर जा तो रहे हो, मगर रावजी की विशाल सेना के सामने क्या लड़ सकोगे। तो सवाई भोज को जोश जाता है और वो अपनी तलवार से ११ हाथ की भाटा चट्टान को चीर देते हैं। ये देख कर रानी सोचती है कि एक ही वार से चट्टान चीर दी, रावजी का क्या हाल होगा, जब सभी २४ भाई एक साथ लड़ाई करेगें। रानी जयमती वहीं पर सवाई भोज से वचन लेती है कि रावजी से युद्ध के समय आप सभी २४ भाई अपनी सेना के साथ रावजी से एक-एक कर युद्ध करोगे। सभी भाई साथ मिलकर युद्ध नहीं करोगें। सवाई भोज रानी जयमती को ये वचन दे देते हैं कि हम साथ मिलकर युद्ध नहीं करेंगे। सवाई भोज रानी जयमती को गोठां में लाने से पहले राता देवरा में उतारते हैं। राता देवरा में सवाई भोज और नियाजी भवानी को दारु पीने के लिये मनुहार करते हैं, भवानी कहती कि आप लोग माथा (सिर) देवो तो में दारु पीउ और कहती है कि आपके घर से मुझे बधाई के गीत गाते हुए लेने आएं तो मैं घर चलूं। जब बगड़ावत वहाँ से घर वालों को खबर देने गोठां चले जाते हैं तब वहाँ पर पोमा घासी जाता है और राणी से कहता है, आप मेरे साथ शादी कर लो, बगड़ावतों के यहां तो पहले से ही बहुत रानियां है। भवानी उससे बगड़ावतों के घर की सारी बातें पूछ लेती है। और बाद में नोहत्थी नाहरी बन के हुंकार करती है। पोमा घासी नाहरी को देखकर डर के मारे गिर जाता है, उसके रोटी और प्याज बिखर जाते हैं और पानी की बतूकड़ी फूट जाती है। गांव की गुर्जर महिलाएं बधाई के गीत गाते हुए रानी को लेने के लिये आती हैं। साथ में २४ भाईयों की राणीयां भी आती हैं। जब नेतूजी और दीपकवंर रानी जयमती के पास आती है तो रानी जयमती दीप कंवर से पूछती है की तू किसकी बेटी है और ये किसकी बहू। दीपकंवर बाई रानी को जवाब देती है कि मै सवाई भोज की लड़की और ये काका नियाजी की रानी नेतुजी हैं। सभी रानियाँ तो रानी जयमती के पांव छूती हैं मगर नेतूजी नहीं छूती। जब सब औरतें रानी को लेकर गोठां पहुंचती है तो वहां पर साडू माता आरती ऊतारकर नववधु का स्वागत करती है। रानीजी साडू माता से कहती है कि आपने बहुत प्यार से मेरा स्वागत किया है आज तो मैं आपकी सौत बनकर आई हूँ। जब देवनारायण भगवान आपकी गोद में खेलेंगे तब मैं आपकी बहू बनकर आऊँगी। रानी जयमती को उनके महल में ले जाया जाता हैं। रानी जयमती और सवाई भोज गोंठा के महल में चौपड़ खेलते हैं।



Featured Post

बगडावत भारत कथा और श्री देवनारायण -1

बगडावत भारत कथा - 1 बगडावत भारत महागाथा अजमेर के राजा बिसलदेवजी के भाई माण्डलजी से शुरु होती है जो कि देवन...